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नई दिल्ली: भारत अपने पहली रॉकेट लॉन्चिंग के करीब 6 दशक बाद चंद्रयान-3 मिशन (India's Chandrayaan-3 Mission) की सफलता के साथ दुनिया में स्पेस पावर (Space Power) बनकर उभरा है. भारतीय स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) की वजह से भारत अब स्पेस रिसर्च और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में मजबूत स्थिति में है. चंद्रयान-3 की सफलता के बीच अब एक्सपर्ट का कहना है कि वो समय आ गया है कि देश स्पेस पॉलिसी पर एक राष्ट्रीय रणनीतिक दृष्टिकोण लेकर आए. ऐसा नजरिया जो स्पेस टेक्नोलॉजी को बढ़ावा दे. स्पेस इकोनॉमी (Space Economy) को आगे लेकर जाए और अपने जियो-पॉलिटिकल फायदे को दोगुना-चौगुना करे.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का स्थायी सदस्य बनने का भारत का लक्ष्य अभी भी अधूरा है, लेकिन भारत अब उन देशों के एलीट ग्रुप में शामिल हो गया है, जिनके स्पेसक्राफ्ट चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कर चुके हैं. भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश है. भारत से पहले अमेरिका, यूएसएसआर और चीन ऐसा कर चुके हैं. वहीं, चांद के साउथ पोल पर पहुंचने वाला भारत दुनिया का एकमात्र देश है. जबकि इज़राइल, जापान, रूस और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) सहित कई देश चांद के साउथ पोल पर उतरने में नाकाम रहे हैं.
चंद्रयान 3 मिशन की कामयाबी दुनिया को एक मैसेज
अमेरिका में एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी की थंडरबर्ड स्कूल ऑफ ग्लोबल मैनेजमेंट में स्पेस पॉलिसी की प्रोफेसर नम्रता गोस्वामी ने NDTV से इस बारे में बात की. उन्होंने बताया कि भारत के चंद्रयान 3 मिशन की कामयाबी दुनिया को एक मैसेज देती है कि भारत एक स्पेस पावर के तौर पर मैच्योर हो चुका है. स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत के आत्मनिर्भर होने के साथ ही ये धारणा भी बदल चुकी है कि भारत के लिए रूस तथाकथित मददगार था.
प्रोफेसर नम्रता गोस्वामी ने इस तथ्य पर जोर देते हुए कहा कि स्पेस किसी राष्ट्र की रणनीतिक धारणा को बढ़ाने के साथ-साथ उसकी शक्ति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. उन्होंने कहा कि भारत ने अपने मून मिशन में सफल होकर भारतीय स्पेस टेक्नोलॉजी की मैच्योरिटी और मेक इन इंडिया क्षमता को दिखाया है. हालांकि, भारत अभी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटजी) और स्पेस टेक्नोलॉजी पॉलिसी में पीछे है. लेकिन चंद्रयान-3 से साफ पता चलता है कि स्पेस कैसे भारत की रणनीतिक दृष्टि का हिस्सा है.
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