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दिल्ली विधानसभा भंग क्यों नहीं कर रहे केजरीवाल? जानें इनसाइड स्टोरी


THN Network

DELHI DESK; दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जेल से बाहर आने के बाद इस्तीफा देने की घोषणा कर दी है। केजरीवाल ने जनता से 'ईमानदारी का प्रमाणपत्र' मिलने तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठने का संकल्प लेते हुए दिल्ली में समय पूर्व चुनाव कराने की मांग की। केजरीवाल के इस्तीफे ने दिल्ली में मुख्य विपक्षी दल बीजेपी के साथ ही कांग्रेस को भी हैरान कर दिया। इसके साथ राजनीतिक सरगर्मियां भी तेज हो गईं। एक बड़ा सवाल यह उठा कि यदि केजरीवाल जल्द विधानसभा चुनाव चाहते हैं तो उन्हें विधानसभा भंग कर देनी चाहिए। आखिर अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा को भंग क्यों नहीं किया।

जरूरी नहीं कि महाराष्ट्र के साथ ही चुनाव हो
दिल्ली विधानसभा को भंग नहीं करने के पीछे एक बड़ी वजह है कि दिल्ली में चुनाव को लेकर समय तय करना दिल्ली सरकार के हाथ में नहीं है। दिल्ली की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल अगले साल 23 फरवरी को समाप्त हो रहा है। राष्ट्रीय राजधानी में फरवरी 2025 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव कराए जाने की संभावना है। केजरीवाल ने रविवार को मांग की कि दिल्ली में नवंबर में महाराष्ट्र के साथ विधानसभा चुनाव कराए जाएं। अगर दिल्ली में समय पूर्व चुनाव कराने के लिए निर्वाचन आयोग को पत्र लिखकर इसके कारण बताने पड़ सकते हैं। हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि दिल्ली में विधानसभा चुनाव कब कराना हैं, इस संबंध में अंतिम फैसला चुनाव आयोग ही करेगा।


चुनाव आयोग के पास होनी चाहिए वजह
भारतीय संविधान के साथ-साथ जनप्रतिनिधि अधिनियम के प्रावधानों के जानकारों का कहना है कि दिल्ली सरकार को निर्वाचन आयोग को पत्र लिखकर बताना पड़ सकता है कि राष्ट्रीय राजधानी में समय से पहले चुनाव क्यों कराए जाएं, लेकिन इस संबंध में अंतिम निर्णय आयोग ही लेगा। एक के अनुसार कानूनी रूप से निर्वाचन आयोग के पास दिल्ली में महाराष्ट्र के साथ विधानसभा चुनाव कराने की शक्ति है। लेकिन पिछले मौकों पर दिल्ली में अलग से चुनाव हुए थे। निर्वाचन आयोग के पास महाराष्ट्र और दिल्ली में चुनाव एक साथ कराने का कोई कारण होना चाहिए।

तो केंद्र सरकार के हाथ में रहेगी कमान
केजरीवाल के विधानसभा भंग नहीं करने की बड़ी वजह चुनाव से जुड़े लोकलुभाव फैसले भी हो सकते हैं। यदि केजरीवाल विधानसभा भंग करते हैं तो दिल्ली पर केंद्र का प्रशासनिक नियंत्रण होगा। ऐसे में अगर दिसंबर में चुनाव नहीं होते हैं तो लंबे समय तक दिल्ली के शासन की बागडोर एलजी के हाथ में रहेगी। इससे केजरीवाल चुनाव से जुड़े लोकलुभावन फैसले नहीं ले पाएंगे। केजरीवाल सरकार ने बजट में दिल्ली की महिलाओं को हर महीने एक-एक हजार रुपये देने की घोषणा की थी। यदि विधानसभा भंग होती है तो केजरीवाल सरकार मुख्यमंत्री महिला सम्मान निधि योजना को लागू करने से जुड़ा फैसला नहीं ले पाएगी। इस योजना से दिल्ली की 50 लाख महिलाओं को फायदा मिलने का अनुमान है।

गुजरात में मोदी ने भंग की थी विधानसभा
दरअसल, इसी तरह का वाकया गुजरात में भी हुआ था। साल 2002 में गुजरात दंगों के बाद तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल खड़े होने लगे थे। बीजेपी की गोवा कार्यकारिणी में नरेंद्र मोदी का इस्तीफा देने को लेकर चर्चा हुई थी। हालांकि, आडवाणी इसके पक्ष में नहीं थे। बाद में नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। जुलाई में गुजरात विधानसभा को भंग कर दिया गया। इसके बावजूद भी समयपूर्व चुनाव नहीं हुए। उस समय चुनाव आयोग के मुख्य निर्वाचन आयुक्त की कमान जेएम लिंगदोह के पास हुआ करती थी। लिंगदोह ने समय पूर्व विधानसभा भंग होने के बावजूद तय समय पर ही चुनाव कराने का फैसला किया था। चुनाव आयोग ने दिसंबर 2002 में विधानसभा चुनाव कराया था। इस चुनाव में बीजेपी ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 182 में से 127 सीटों पर जीत हासिल की थी।

तो अगले साल ही होंगे चुनाव
एक्सपर्ट्स के अनुसार दिल्ली में मतदाता सूची को जनवरी में अपडेट किया जाएगा। इसकी कटऑफ डेट एक जनवरी है। जब मतदाता सूची अपडेट हो जाती है, तो नए रजिस्टर्ड वोटर वोट डालने में सक्षम हो जाते हैं। इसलिए निर्वाचन आयोग दिल्ली में तय योजना के मुताबिक चुनाव कराने का फैसला ले सकता है। ऐसे में दिल्ली विधानसभा भंग नहीं करने के पीछे वजहों में से यह भी एक कारण हो सकता है।

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