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Foreign Desk, New Delhi: पाकिस्तान-ईरान ने एक-दूसरे पर हमले किए हैं। दोनों ने दावा किया कि हमले आतंकवादियों के खिलाफ हैं, न कि आम नागरिकों के। पहले ईरान ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हमला किया था। इसके एक दिन बाद पाकिस्तानी सेना ने ईरान में एयर स्ट्राइक की है। इन घटनाओं ने मध्य पूर्व में लगी आग को दक्षिण एशिया तक पहुंचा दिया। विस्तार से समझते हैं इसके पीछे की कहानी।
क्या है ईरान और पाकिस्तान के बीच विवाद?
पाकिस्तान-ईरान 900 किमी की सीमा साझा करते हैं। एक तरफ पाकिस्तान का बलूचिस्तान प्रांत है। दूसरी तरफ ईरान का सिस्तान और बलूचिस्तान हैं। दोनों देशों ने सीमा पर अशांत बलूच क्षेत्र में लंबे समय से आतंकियों से लड़ाई लड़ी है। दोनों का दुश्मन एक जैसा है जो अलगाववाद की भावना रखता है। सीमा पर रहने वाले बलूच लोगों ने लंबे समय से स्वतंत्रता के लिए उग्र प्रदर्शन किया है। उन्होंने हमेशा पाकिस्तान और ईरान से नाराजगी जताई है। इस कारण ये इलाका विद्रोही शक्तियों का अड्डा है। ये सीमा के दोनों ओर बराबर प्रभाव डालती हैं। कुछ वर्षों में सीमा पर घातक झड़पें लगातार होती रही हैं।
जैश अल-अदल कौन, जिसके ठिकानों पर हुए हमले?
ईरान ने साफ किया कि उसने जैश अल-अदल के ठिकानों पर हमले किए हैं। जैश अल-अदल आतंकवादी संगठन है। इसकी स्थापना 2012 में की गई थी। यह 2013 से बॉर्डर पर तैनात ईरानी सेना पर हमले कर रहा है। इस समूह ने 2023 दिसंबर के मध्य में ईरान के एक पुलिस स्टेशन पर हमला किया था जिसमें 11 ईरानी पुलिसवालों की मौत हुई। जैश अल-अदल का दवा है कि वह ईरान के सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत की स्वतंत्रता और बलूच लोगों के अधिकारों के लिए लड़ रहा है।
जब ईरान और पाक का दुश्मन एक जैसे, तो हमले क्यों?
दोनों देशों के कॉमन शत्रु हैं। वे हैं अलगाववादी। ऐसे में एक-दूसरे पर हमलों को अजीब माना जा रहा है। ईरान ने पाकिस्तान पर सीमा पार हमलों के लिए जिम्मेदार जैश-अल-अदल जैसे आतंकवादी समूहों को पनाह और समर्थन देने का आरोप लगाया है। उधर ईरान के हमले से पाकिस्तान में लोगों का गुस्सा सरकार के प्रति लगातार बढ़ रहा था। चुनाव के ठीक पहले कार्यवाहक सरकार इस विरोध को झेलने की स्थिति में नहीं थी। ऐसे में पाकिस्तान ने जवाबी हमला करने का विकल्प चुना।
इस वक्त हमलों के पीछे ईरान की मंशा क्या है?
बड़े क्षेत्रीय संघर्ष ने ईरान को अपनी सीमाओं से परे सक्रिय होने के लिए प्रोत्साहित किया है। विशेष रूप से जब अमेरिका ने क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए ईरान के आसपास सैन्य शक्ति बढ़ाई है। पाकिस्तान में हमले से एक दिन पहले ईरान ने इराक, सीरिया पर बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं। ईरान ने दावा किया कि वह इस्राइली बलों और ईरान विरोधी आतंकी समूहों के जासूसी अड्डे को निशाना बना रहा है। लेबनान सीमा पर इस्राइल-हिजबुल्लाह में लड़ाई जारी है। अमेरिका यमन में ईरान समर्थित हूती से लड़ रहा है, जिन्होंने गाजा पर इस्राइली हमले का बदला लेने के नाम पर जहाजों पर हमला किया। पूरे घटनाक्रम के बीच ईरान क्षेत्र में नेता के रूप में उभरने की कोशिश कर रहा है।
इस पूरे मामले में भारत किधर खड़ा है?
ईरान के हमले के एक दिन बाद यानी बुधवार को भारत के विदेश मंत्रालय ने ईरान-पाकिस्तान तनाव पर एक बयान जारी किया। विदेश मंत्रालय ने कहा, ये मामला ईरान और पाकिस्तान के बीच का है, लेकिन जहां तक भारत का सवाल है, आतंकवाद को लेकर हमारे देश की नीति जीरो टॉलरेंस की है। हम इस बात को समझते हैं कि कई देश आत्मरक्षा में कार्रवाई करते हैं। उधर अमेरिका ने ईरान की तरफ से किए गए हमलों को गलत बताया है। चीन ने कहा है कि दोनों देशों को संयम बरतना चाहिए।
क्या दोनों देशों में सीधे युद्ध की कोई आशंका है?
एक जैसे दुश्मन से निबटने की कोशिशों में दोनों देश आमने-सामने युद्ध में जाएंगे, ऐसा नहीं लगता। दोनों देशों ने हमलों के बाद बेहद सधे शब्दों में प्रतिक्रिया दी है। पाकिस्तान ने ईरान को दोस्ताना देश बताया है और समस्या का मिलकर सामना करने की बात कही है। ईरान ने भी इसी भाषा में प्रतिक्रिया दी और कहा कि उनके हमले पाकिस्तान के खिलाफ नहीं, आतंकी समूहों के खिलाफ हैं।
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