THN Network
दरअसल, बिहार में पिछले कुछ समय से नीतीश कुमार की राजनीतिक लोकप्रियता रसातल में पहुंच गई है। उनकी पलटीमार पाॅलिटिक्स अपने क्लाइमेक्स पर पहुंच चुका है और यह उनके राजनीतिक अवसान का ही प्रतिबिंब है। एक समय नीतीश कुमार के बेहद करीबी रहे चुनाव रणनीतिकार और इस समय बिहार में जन सुराज यात्रा लेकर चल रहे प्रशांत किशोर तो नीतीश कुमार के राजनीतिक जमीन को लेकर दावा करते हैं कि अगले विधानसभा चुनाव में उन्हें 20 सीट भी नहीं मिलने जा रहा है। वह कहते हैं कि अगर नीतीश कुमार ने अभी पलटी नहीं मारी होती तो 2024 लोकसभा चुनाव में उन्हें 5 सीटें भी नहीं मिलती। इसलिए नीतीश कुमार ने BJP का हाथ पकड़ा है कि नरेंद्र मोदी के कमंडल रथ पर बैठकर वह 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी राजनीतिक जमीन को किसी तरह बचा लें ताकि 10-12 लोकसभा सीट भी जीता जा सके। हालांकि नीतीश कुमार और BJP की जो सोच हो, लेकिन आम बिहारी उनसे इत्तेफाक रखता हुआ नहीं दिख रहा है। नीतीश कुमार को लेकर आम बिहारियों में यह बात पूरी तरह साफ हो गई है कि वह किसी भी तरह मुख्यमंत्री की कुर्सी से चिपके रहना चाहते हैं। इसके लिए वह किसी के भी साथ राजनीतिक सौदेबाजी कर लेते हैं। राजनीतिक सिद्धांत और विचारधारा को वह कपड़े की तरह इस्तेमाल करते हैं और जब जो पसंद आया वह चोला ओढ़ लिया। पिछले करीब चार दशक की नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा- सुशासन बाबू से लेकर पलटीमार पाॅलिटिक्स पर पूरे बिहार में चर्चा चल रही है। कैसे 1994 में नीतीश कुमार ने जार्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर जनता दल को तोड़ा था और फिर समता पार्टी बनाकर 1995 में CPI-ML के साथ तालमेल कर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा था। और विधानसभा चुनावों में मिली बुरी हार के बाद कैसे BJP से हाथ मिलाकर 1996 का लोकसभा चुनाव लड़ा और तब से 2013 तक BJP के साथ लगातार गठबंधन में रहे। लेकिन फिर 2013 से 2024 के बीच हर दो-तीन साल पर कभी उसी RJD के साथ गठबंधन करते रहे जिसके खिलाफ वह 1994 से लगातार लड़ते रहे तो कभी उस BJP के साथ मिलकर पलटीमार पाॅलिटिक्स का खेल खेलते रहे, जिसने उन्हें कई बार मुख्यमंत्री बनाया। याद रहे कि नीतीश कुमार को बिहार विधानसभा में कभी अकेले बहुमत नहीं मिला और नौ में से छह बार उन्होंने BJP के समर्थन के बूते मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है।
सोशल मीडिया पर तो इन दिनों नीतीश कुमार को लेकर जिस तरह के चुटकुले चल रहे हैं यह उनकी राजनीतिक यात्रा के पतन की ओर ही इशारा कर रहा है। जाहिर तौर पर बिहार के मतदाताओं में नीतीश कुमार की वर्तमान राजनीतिक साख को देखकर BJP के लाखों कार्यकर्ताओं को तो यही लग रहा है कि कहीं वह उसके लिए पाॅलिटिकल लाइबिलिटी ना बन जाएं।
(लेखक विकास वर्मा वरिष्ठ पत्रकार और www.tophindinews.com के Editor-in-Chief हैं)
0 Comments