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कहीं BJP के लिए पाॅलिटिकल लाइबिलिटी ना बन जाएं नीतीश कुमार?


THN Network

विकास वर्मा 


I.N.D.I.A. गठबंधन को ध्वस्त करने के इरादे के साथ BJP एक बार फिर नीतीश कुमार के साथ राजनीतिक जुगलबंदी कर बिहार में सत्तासीन हुई है। 2024 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस राजनीतिक उलटबांसी से बिहार से लेकर दिल्ली और देशभर के BJP नेता काफी उत्साहित हैं। लेकिन बिहार समेत देश के आम मतदाता ही नहीं उसके लाखों कार्यकर्ता इस राजनीतिक उठा-पटक से हैरान-परेशान हैं। पिछले हफ्ते ही अयोध्या में भगवान राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम से देशभर में हिन्दूत्व का जो भावनात्मक माहौल BJP-RSS और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तैयार करने में कामयाबी हासिल की और कमंडल पालिटिक्स के जिस रथ पर सवार होकर BJP के लाखों कार्यकर्ता भी 2024 की चुनावी वैतरणी आसानी से पार कर जाने को लेकर मुतमईन थे, अचानक नीतीश कुमार के साथ 'पलटीमार पाॅलिटिक्स' के हमसफ़र बन जाने के BJP नेतृत्व के फैसले से उसके लाखों कार्यकर्ता हक्का-बक्का हैं। सिर्फ डेढ़ साल पहले 9 अगस्त 2022 को नीतीश कुमार ने महागठबंधन से हाथ मिलाकर BJP को बिहार की सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया था और जुलाई 2023 में पटना में I.N.D.I.A. गठबंधन की नींव रखकर नीतीश ने PM नरेंद्र मोदी और BJP को देश के लिए ख़तरनाक बताते हुए 2024 के लोकसभा चुनावों में हराने के अभियान में लगे थे। नीतीश कुमार के पलटीमार पाॅलिटिक्स और इस अभियान से परेशान BJP के केंद्रीय नेतृत्व से लेकर राज्य BJP के नेता भी नीतीश कुमार को धोखेबाज कहते नहीं थकते थे और भविष्य में कभी नीतीश कुमार से गठबंधन नहीं करने और उनके लिए BJP का दरवाजा हमेशा के लिए बंद कर दिए जाने का वचन बिहार के आम लोगों और अपने कार्यकर्ताओं को देते नहीं थकते थे। BJP कार्यकर्ताओं और बिहार के आम लोगों ने भी यह मान लिया था कि अब BJP कभी नीतीश कुमार से हाथ नहीं मिलाएगी। BJP के बिहार प्रदेश अध्यक्ष और इस समय नीतीश सरकार के उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने तो पिछले डेढ़ साल से सिर पर मुरेठा बांध रखा था और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने पर ही मुरेठा खोलने की बात पटना में पत्रकारों को रोज ठोककर कहते थे। तो फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि नीतीश कुमार के सारे राजनीतिक पाप पुण्य में बदल गए? यही सवाल इस समय बिहार BJP के कार्यकर्ताओं और BJP के समर्थकों को मथ रहा है।

दरअसल, बिहार में पिछले कुछ समय से नीतीश कुमार की राजनीतिक लोकप्रियता रसातल में पहुंच गई है। उनकी पलटीमार पाॅलिटिक्स अपने क्लाइमेक्स पर पहुंच चुका है और यह उनके राजनीतिक अवसान का ही प्रतिबिंब है। एक समय नीतीश कुमार के बेहद करीबी रहे चुनाव रणनीतिकार और इस समय बिहार में जन सुराज यात्रा लेकर चल रहे प्रशांत किशोर तो नीतीश कुमार के राजनीतिक जमीन को लेकर दावा करते हैं कि अगले विधानसभा चुनाव में उन्हें 20 सीट भी नहीं मिलने जा रहा है। वह कहते हैं कि अगर नीतीश कुमार ने अभी पलटी नहीं मारी होती तो 2024 लोकसभा चुनाव में उन्हें 5 सीटें भी नहीं मिलती। इसलिए नीतीश कुमार ने BJP का हाथ पकड़ा है कि नरेंद्र मोदी के कमंडल रथ पर बैठकर वह 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी राजनीतिक जमीन को किसी तरह बचा लें ताकि 10-12 लोकसभा सीट भी जीता जा सके। हालांकि नीतीश कुमार और BJP की जो सोच हो, लेकिन आम बिहारी उनसे इत्तेफाक रखता हुआ नहीं दिख रहा है। नीतीश कुमार को लेकर आम बिहारियों में यह बात पूरी तरह साफ हो गई है कि वह किसी भी तरह मुख्यमंत्री की कुर्सी से चिपके रहना चाहते हैं। इसके लिए वह किसी के भी साथ राजनीतिक सौदेबाजी कर लेते हैं। राजनीतिक सिद्धांत और विचारधारा को वह कपड़े की तरह इस्तेमाल करते हैं और जब जो पसंद आया वह चोला ओढ़ लिया। पिछले करीब चार दशक की नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा- सुशासन बाबू से लेकर पलटीमार पाॅलिटिक्स पर पूरे बिहार में चर्चा चल रही है। कैसे 1994 में नीतीश कुमार ने जार्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर जनता दल को तोड़ा था और फिर समता पार्टी बनाकर 1995 में CPI-ML के साथ तालमेल कर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा था। और विधानसभा चुनावों में मिली बुरी हार के बाद कैसे BJP से हाथ मिलाकर 1996 का लोकसभा चुनाव लड़ा और तब से 2013 तक BJP के साथ लगातार गठबंधन में रहे। लेकिन फिर 2013 से 2024 के बीच हर दो-तीन साल पर कभी उसी RJD के साथ गठबंधन करते रहे जिसके खिलाफ वह 1994 से लगातार लड़ते रहे तो कभी उस BJP के साथ मिलकर पलटीमार पाॅलिटिक्स का खेल खेलते रहे, जिसने उन्हें कई बार मुख्यमंत्री बनाया। याद रहे कि नीतीश कुमार को बिहार विधानसभा में कभी अकेले बहुमत नहीं मिला और नौ में से छह बार उन्होंने BJP के समर्थन के बूते मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। 

सोशल मीडिया पर तो इन दिनों नीतीश कुमार को लेकर जिस तरह के चुटकुले चल रहे हैं यह उनकी राजनीतिक यात्रा के पतन की ओर ही इशारा कर रहा है। जाहिर तौर पर बिहार के मतदाताओं में नीतीश कुमार की वर्तमान राजनीतिक साख को देखकर BJP के लाखों कार्यकर्ताओं को तो यही लग रहा है कि कहीं वह उसके लिए पाॅलिटिकल लाइबिलिटी ना बन जाएं।


(लेखक विकास वर्मा वरिष्ठ पत्रकार और www.tophindinews.com के Editor-in-Chief हैं)

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