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FOREIGN DESK: 19 मई को जापान के हिरोशिमा शहर में दुनिया के अमीर देशों के संगठन ‘G7’ की बैठक शुरू हो रही है। लगातार चौथी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस संगठन की मीटिंग में बतौर गेस्ट शामिल हो रहे हैं।
G7 ने पहली बार 2003 में भारत को अपनी बैठक में शामिल होने का न्योता भेजा था। इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी फ्रांस गए थे। संगठन का सदस्य नहीं होने के बावजूद भारत इसकी बैठकों में शामिल होता रहा है।जी-7 दुनिया के सात विकसित और अमीर देशों का समूह है। जिसमें अभी कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं। इसे ग्रुप ऑफ सेवन भी कहा जाता है।
इसकी शुरुआत शीत युद्ध के दौरान उस समय हुई जब एक तरफ सोवियत संघ और उसके समर्थन वाले देशों ने मिलकर वॉरसा के नाम से एक ग्रुप बनाया था। वहीं, दूसरी तरफ पश्चिम के औद्योगिक और विकसित देश थे।
1975 में वामपंथ विरोधी पश्चिमी देश फ्रांस, इटली, वेस्ट जर्मनी (उस समय जर्मनी दो टुकड़ों में बंटा था) अमेरिका, ब्रिटेन और जापान एक मंच पर आते हैं। उनका मकसद अपने हितों से जुड़े अर्थव्यवस्था के मुद्दों पर एक साथ बैठकर चर्चा करना होता है। तब से इस अनौपचारिक संगठन की शुरुआत होती है। शरुआत में ये 6 देश थे, 1976 में कनाडा के शामिल होने से ये G7 हो गया।
1998 में G7 संगठन के दूसरे फेज की शुरुआत होती है। जब रूस को इसमें शामिल किया जाता है। इस समय रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन थे। तब रूस की पॉलिसी भी अमेरिका और पश्चिमी देशों के समर्थन वाली थी। G7 में रूस के शामिल होने के बाद इसका नाम G8 हो गया। 2014 में क्रिमिया में रूस की घुसपैठ के बाद उसे संगठन से बाहर कर दिया गया था।
G7 संगठन की पहली बैठक में सऊदी की ओर से शुरू की गई ऑयल क्राइसिस से निपटने के लिए योजना बनाई गई थी। साथ ही उस समय एक्सचेंज रेट क्राइसिस शुरू हुआ था। इसका मतलब ये हुआ कि अमेरिका ने डॉलर की वैल्यू को सोने से डी-लिंक कर दिया था। अमेरिका ने ऐसा दुनिया में सोने की बजाय डॉलर के दबदबे को बढ़ाने के लिए किया था। हालांकि इससे दूसरे देशों के लिए आर्थिक परेशानियों शुरू हो गईं।
इस बीच पश्चिमी देशों को लगा कि उन्हें फाइनेंशियल लेवल पर पॉलिसी बनाने के लिए एक साथ आने की जरूरत है। ताकि वो आपस में अपने बिजनेस और ट्रेड के मसले सुलझा पाएं।
तब से लगातार हर साल इस संगठन की बैठक होती है। ये देश दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था से जुड़े अहम मुद्दों पर चर्चा करते हैं।
उदाहरण- पिछले साल हुई G7 की बैठक में सातों देशों ने यूक्रेन जंग के चलते रूस पर पाबंदी लगाने की घोषणा की थी।
मेंबर नहीं होने के बावजूद G7 की बैठक में शामिल होने से भारत को क्या फायदा है?
जवाब: इस बैठक में प्रधानमंत्री के जाने से भारत को 3 तरह से फायदे हो सकते हैं…
1.चीन की वजह से साउथ चाइना सी वाले क्षेत्र में काफी सारे डेवलपमेंट हो रहे हैं। चीन की पॉलिसी सिर्फ जापान और साउथ कोरिया को लेकर ही नहीं बल्कि भारत को लेकर भी काफी एग्रेसिव है।
ऐसे में भारत G7 की बैठक में चीन को लेकर अपना पक्ष रख सकता है। वो भी तब जब चीन को काबू करने के लिए भारत भी अमेरिका और जापान के साथ मिलकर काम कर रहा है।
2. G7 में कई ट्राइलैट्रल यानी जरूरत के मुताबिक अलग-अलग तीन देशों की मीटिंग होती हैं। इसमें भारत भी किन्हीं दो देशों के साथ बैठकर किसी मुद्दे पर अपनी बात रख सकता है।
3. भारत कई मुद्दों को लेकर G7 देशों से सहमत नहीं है। जैसे क्लाइमेट चेंज और बिजनेस-ट्रेड। ऐसे में G7 की बैठक में शामिल होकर हम विकासशील देशों का नजरिया G7 के अमीर देशों के सामने रख सकते हैं। हालांकि भारत का रोल डिसीजन मेकिंग में काफी लिमिटेड है।
वहीं, G7 के देश भी भारत की कई बातों से सहमत नहीं है। जैसे हमारे वर्करों को फ्री वीजा इश्यू करना। भारत G7 देशों के दूसरे देशों में सत्ता पलटने और दखलअंदाजी की पॉलिसी से सहमति नहीं रखता है।
UN में फैसला हुए बिना ही ये देश दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में दखल देते हैं, इससे भारत सहमत नहीं है। वो गेस्ट के रूप में भारत बुलाते हैं तो इन मामलों में हम अपना पक्ष रख पाते हैं।
भारत इंटरनेशल लॉ का पालन करता है। दुनिया के देशों का चीन के मुकाबले भारत पर भरोसा करना ज्यादा आसान है। उन्हें लगता है भारत को अपने पक्ष में रखना जरूरी है।
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