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NEW DELHI: केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ( Kiren Rijiju) ने समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) के मुद्दे पर सुनवाई करने वाले सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पर बोलते हुए कहा कि अदालतें इस तरह के मुद्दों को सुलझाने का मंच नहीं हैं. किरेन रिजिजू की ये टिप्पणी तब आई जब बुधवार (26 अप्रैल) को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह करते हुए कहा कि ये मुद्दा संसद पर छोड़ दिया जाए.
किरेन रिजिजू ने रिपब्लिक समिट में बोलते हुए कहा, "अगर पांच बुद्धिमान लोग कुछ तय करते हैं जो उनके अनुसार सही है तो मैं उनके खिलाफ किसी भी तरह की टिप्पणी नहीं कर सकता. हालांकि, अगर लोग ऐसा नहीं चाहते हैं तो आप चीजों को लोगों पर थोप नहीं सकते हैं."
सुप्रीम कोर्ट के पास शक्ति है लेकिन... - किरेन रिजजू
केंद्रीय कानून मंत्री ने आगे कहा, "शादी जैसे महत्वपूर्ण मामले का फैसला देश के लोगों को करना है. सुप्रीम कोर्ट के पास निश्चित रूप से निदर्श जारी करने की शक्ति है. धारा 142 के तहत वे कानून भी बना सकते हैं लेकिन जब देश के प्रत्येक नागरिक को प्रभावित करने वाले मामले की बात आती है तो सुप्रीम कोर्ट मंच नहीं है."
सरकार बनाम अदालत नहीं बनाना चाहता... - किरेन रिजजू
किरेन रिजजू बोले, 'मैं इसे सरकार बनाम अदालत नहीं बनाना चाहता, बिल्कुल भी नहीं. ये अदालत और सरकार के बीच का मामला नहीं है. ये एक ऐसा मामला है जो भारत के प्रत्येक नागरिक से संबंधित है. ये लोगों की इच्छा का सवाल है. लोगों की इच्छा संसद, विधायिका, विधानसभाओं में विभिन्न मंचों पर होती है जिसके लिए लोगों को चुना गया है.' बता दें, इससे पहले भी केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजजू ने इस बात पर जोर दिया कि ये मामला अदालत का नहीं है.
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