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अयोध्या का न्योता ठुकराना कांग्रेस का राजनीतिक Blunder!

विकास वर्मा 






इससे पहले कि I.N.D.I.A. गठबंधन में सीट शेयरिंग का फैसला मूर्त रूप ले पाता,2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले धर्म और आस्था की पिच पर गुगली फेंक रहे PM नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया है। अयोध्या का न्योता ठुकराकर लगता है कांग्रेस पार्टी और उसके रणनीतिकार PM मोदी की राजनीतिक गुगली में फंस गए हैं।

न्योता ठुकराने के सवाल पर कांग्रेस लगातार सफाई दे रही है- ' ...कि यह BJP और RSS का कार्यक्रम है' '...कि अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है' '...कि शंकराचार्यों ने प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का न्योता ठुकरा दिया है' आदि आदि...। लेकिन धर्म और आस्था की चासनी में बह रहे भावना के ज्वार में देश की बहुसंख्यक आबादी को कांग्रेस के ये तर्क कहीं गले नहीं उतर रही है। BJP देश के बहुसंख्यक हिन्दू आबादी को यह समझाने में कामयाब होती दिख रही है कि कांग्रेस पार्टी शुरू से अयोध्या में राम मंदिर की विरोधी रही है और वह राम के अस्तित्व को ही अस्वीकार करती रही है आदि आदि... 

इसलिए उसके शीर्ष नेतृत्व ने अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम का न्योता ठुकरा दिया है। 22 जनवरी की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आते जा रही है मीडिया के बड़े वर्ग और खासतौर पर टीवी न्यूज चैनलों के माध्यम से कांग्रेस पार्टी द्वारा अयोध्या का न्योता ठुकराए जाने से संबंधित खबरें और डिबेट लगातार जोर-शोर से चलवाकर यह स्थापित किया जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी राम मंदिर विरोधी पार्टी है। समय आने पर शायद कांग्रेस पार्टी को इसका एहसास हो, मगर फिलहाल इस फैसले से होने वाले राजनीतिक नुकसान की भरपाई 2024 लोकसभा चुनाव तक हो पाना मुश्किल दिख रहा है। 

अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बहाने PM मोदी ने देशभर में जो भावनात्मक माहौल बनाने में कामयाबी हासिल की है उसकी राजनीतिक फसल काटने में वह ज्यादा विलंब नहीं करेंगे और शायद लोकसभा चुनाव का ऐलान भी जल्द ही हो जाए तो आश्चर्य नहीं। दरअसल, अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में न्योता भिजवाने के बहाने PM मोदी ने सोची समझी रणनीति के तहत कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को राजनीतिक जाल में फंसा लिया है। Game Plan के तहत न्योता भेजने के दो मकसद थे- या तो न्योता स्वीकार किया जाएगा या फिर इंकार। दोनों ही परिस्थितियों में राजनीतिक फायदा PM मोदी और BJP को होना तय था। 

अगर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने का फैसला लिया तो उसे धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर घिरवा देना। इस स्थिति में जहां कांग्रेस पार्टी के धर्मनिरपेक्ष सहयोगी दल उससे छिटक जाते वहीं इस समय सबसे ज्यादा मजबूती के साथ खड़े अल्पसंख्यक मतदाताओं में कांग्रेस पार्टी की साख पूरी तरह से गिर जाता। और अगर न्योता को ठुकराया गया जिसकी पूरी संभावना थी तो कांग्रेस पार्टी को देशभर में हिंदू और भगवान राम के विरोधी पार्टी के तौर पर बदनाम कर आम जनमानस में कांग्रेस विरोधी माहौल बनाया जा सके। 
और ऐसा ही हुआ और हो रहा है। जैसे-जैसे 22 जनवरी 2024 का दिन नजदीक आ रहा है समूचे देश में माहौल भक्तिमय और राममय होता जा रहा है। अयोध्या में भगवान राम मंदिर का निर्माण भले ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हो रहा हो मगर भावनाओं के समुद्र में बह रहे देश की बहुसंख्यक हिन्दू आबादी को ऐसा विश्वास है कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण BJP, RSS और उससे भी बढ़कर PM नरेंद्र मोदी के कारण ही हो रहा है। 

जाहिर तौर पर जब देश में ऐसा माहौल बन गया हो या बना दिया गया हो तो कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में ना आने के तर्कों को सुनने, समझने और मानने के लिए कौन बैठा है? ऐसे में अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को BJP, संघ परिवार और खासतौर पर PM नरेंद्र मोदी इंटरनेशनल इवेंट में तब्दील कर वोट की लहलहाती फसल नहीं काटेंगे तो क्या कांग्रेस पार्टी और I.N.D.I.A. के दलों को 2024 में चुनौती देने का मौका देते। 
 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और tophindinews.com के Editor in Chief हैं)

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