THN Network
उन्होंने आगे कहा कि अगर पड़ोसी देश(भारत) गंभीर मुद्दों पर बात करने के लिए तैयार है तो हम भी बातचीत के लिए तैयार हैं.
शरीफ आगे कहते हैं, 'पिछले 75 वर्षों में हमने तीन युद्ध लड़े हैं. लेकिन इन युद्धों ने देश में सिर्फ गरीबी, बेरोजगारी और संसाधनों की कमी को जन्म दिया है. युद्ध अब विकल्प नहीं है.'
यहां शरीफ 1965 में हुए कश्मीर युद्ध, साल 1971 में हुए बांग्लादेश बंटवारा और साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध की बात कर रहे थे. इन तीनों में ही युद्ध में पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा था.
भारत ने नहीं दी कोई प्रतिक्रिया
भारत और पाकिस्तान के रिश्ते अन्य पड़ोसी देशों से काफी अलग है. विभाजन के बाद से ही दोनों देशों का रिश्ता काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है.
अब 1 अगस्त को शहबाज ने बातचीत की पेशकश जरूर की है, लेकिन भारत की तरफ से अब तक इस बयान को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
भारत ने क्यों किया अनसुना
1. पाकिस्तान में 12 अगस्त 2023 को संसद का पांच साल का कार्यकाल पूरा हो जाएगा. ऐसे में पीएम पद छोड़ने से सिर्फ 12 दिन पहले भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाने की शुरुआत करने की बात सिर्फ आने वाले आम चुनाव से पहले चुनावी कैम्पेन का एक हिस्सा लग रहा है.
शहबाज शरीफ पाकिस्तान की जनता के नजर में खुद को उदार नेता की तरह पेश करना चाहते हैं. ताकी आने वाले लोकसभा चुनाव में उन्हें इसका फायदा मिल सके.
2. ऐसा नहीं है कि भारत ने पहले कभी भी दोनों देशों की कटुता को दूर करने की कोशिश नहीं की. भारत ने हमेशा ही सकारात्मक रवैये के साथ पाकिस्तान के बात करना चाहा लेकिन पड़ोसी देश ने बार बार भारत को धोखा ही दिया है.
दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य करने की कोशिश में साल 1999 के फरवरी महीने में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए लाहौर बस यात्रा की थी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मुलाकात भी की थी. वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान ने भारत के साथ दगा किया.
3. दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध की एक और कोशिश फरवरी 2005 में की गई. इस साल भारत के प्रशासित कश्मीर और पाकिस्तान के प्रशासित कश्मीर के बीच बस सेवा की शुरुआत की गई. लेकिन साल 2008 के जुलाई महीने में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में भारतीय दूतावास पर चरमपंथी हमला हुआ.
भारत से क्यों बातचीत करना चाहता है पाकिस्तान
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के भारत के साथ बातचीत की पेशकश का एक बड़ा कारण पाकिस्तान की छवि भी हो सकती है.
दरअसल वर्तमान में दुनिया के सामने पाकिस्तान की छवि एक आतंकी और गरीब देश की बनी हुई है. ज्यादातर देश पाकिस्तान को कर्ज तक नहीं देना चाहते है.
इसके अलावा कई ऐसे देश हैं जो पाकिस्तान को इसलिए भी भाव नहीं देते ताकि उनका भारत से संबंध खराब न हो जाए.
आतंकवाद पड़ने लगे पाकिस्तान पर भारी
पिछले कुछ समय भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान भयंकर आर्थिक तंगी, गरीबी, भुखमरी से गुजर रहा है. हाल ये है कि जिस आतंक को इस देश ने पनाह दी, पाला-पोषा था, वही आतंकवाद अब पाकिस्तान पर भारी पड़ने लगा है.
वहीं दूसरी तरफ दूसरी तरफ दुनियाभर में भारत की छवि सशक्त, ताकतवर, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और वर्ल्ड लीडर के तौर पर बन रही है.
ऐसे में अगर पाकिस्तान भारत के साथ खराब संबंध रखता है तो उसे सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बल्कि वैश्विक सपोर्ट के स्तर पर भी भारी नुकसान हो रहा है.
पाकिस्तान और भारत के रिश्ते सुधर सकते हैं?
पिछले साल ही अजीत डोभाल ने कहा था कि भारत पाकिस्तान के साथ सामान्य संबंध बनाना तो चाहता है लेकिन हम आतंकवाद को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे.
उन्होंने ये साफ कहा था कि पाकिस्तान अपनी सुविधा के अनुसार जब चाहे युद्ध और चाहे शांति नहीं चुन सकते हैं. उन्होंने ये भी साफ कहा था कि पाकिस्तान से बातचीत करने का फैसला भी भारत ही करेगा.
उन्होंने कहा था कि रिश्ते सुधारने के लिए कब और किससे किन शर्तों पर करनी है यह भी हम ही निर्धारित करेंगे.
एक तरफ बातचीत की पेशकश दूसरी तरफ परमाणु का जिक्र
1 अगस्त को पाकिस्तान के पीएम ने भारत के बातचीत करने के अपने बयान के थोड़ी देर बाद ही परमाणु हथियारों का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा 'पाकिस्तान परमाणु संपन्न देश है.
ऐसा आक्रमक होने के लिए नहीं बल्कि खुद की रक्षा के लिए किया गया है.
साल 2023 के जून महीने में स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक साल में जहां चीन ने 60 परमाणु हथियार बढ़ाए हैं.
रूस ने 12 परमाणु हथियार बनाए तो वहीं पाकिस्तान ने भी 5 परमाणु हथियार बनाए हैं. इसके अलावा नॉर्थ कोरिया ने 5 और भारत ने 4 हथियार बढ़ाए हैं.
पाकिस्तान में कब होंगे आम चुनाव ?
पाकिस्तान में संसद का कार्यकाल खत्म होने में सिर्फ 12 दिन बचे हैं. पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक, आम चुनाव संसद के कार्यकाल खत्म होने के 60 दिन बाद तक कराया जाता है.
हालांकि, सरकार संवैधानिक कार्यकाल समाप्त होने से पहले संसद के निचले सदन को भंग कर देती है तो चुनाव की तारीख को विघटन के 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है. फिलहाल 14 अगस्त को संसद का ये कार्यकाल खत्म हो जाएगा. जिसके बाद चुनाव आयोग तय करेगा कि चुनाव कब होंगे.
0 Comments