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NEW DELHI: 'सभी चोरों का नाम मोदी क्यों है?' कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को उनके इस बयान पर मिली दो वर्ष जेल की सजा पर रोक लग गई। सुप्रीम कोर्ट ने राहुल की याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि गुजरात की निचली अदालत ने अपने आदेश में यह नहीं बताया कि आखिर मानहानि के इस केस में अधिकतम सजा क्यों दी गई और हाई कोर्ट भी निचली अदालत के फैसले को जायज ठहराते हुए इस मुद्दे पर चुप ही रहा। एक तरफ राहुल गांधी को मिली राहत और दूसरी तरफ गुजरात की निचली अदालत और वहां के हाई कोर्ट को लगी लताड़ से कांग्रेस पार्टी में खुशी की लहर दौड़ गई। लेकिन तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है जो चर्चा में नहीं आ पाया और वो है- सुप्रीम कोर्ट की ही एक टिप्पणी या कह लें राहुल गांधी को दी गई सलाह। देश जिस सर्वोच्च न्यायालय ने राहुल गांधी को मानहानि केस में राहत दी है, उसी ने यह भी कहा कि राहुल गांधी ने जो कहा, वो गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने राहुल को यह भी याद दिलाई कि वो एक पब्लिक फीगर हैं, ऐसे में इस तरह की बातें करना सही नहीं है।
कोई संदेह नहीं राहुल गांधी ने जो कहा, नहीं कहना चाहिए था: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'इसमें कोई संदेह नहीं है कि याचिकाकर्ता (राहुल गांधी) का कथित बयान अच्छा नहीं है। सार्वजनिक जीवन में एक व्यक्ति से सार्वजनिक भाषण देते समय कुछ हद तक संयम बरतने की अपेक्षा की जाती है... याचिकाकर्ता को सार्वजनिक भाषण देते समय अधिक सावधानी बरतनी चाहिए थी।' हालांकि, उसने यह भी स्पष्ट किया कि वह मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी नहीं कर रहा है।
गुजरात से आए फैसलों पर रोक
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरनेम केस में राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक तो लगा ही दी, उसने यह भी कह दिया कि गुजरात की निचली अदालत ने बिना कोई कारण बताए मानहानि के लिए अधिकतम सजा सुनाकर गलत किया। फिर गुजरात हाई कोर्ट ने भी इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया, जिसने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ राहुल गांधी की याचिका खारिज कर दी थी। इसने कहा कि निचली अदालत ने इस एंगल पर गौर तक नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत के आदेश ने न केवल एक व्यक्ति (राहुल गांधी) के अधिकार को प्रभावित किया, बल्कि वायनाड के पूरे जनसमुदाय के अधिकारों को भी प्रभावित किया क्योंकि संसद में उनका प्रतिनिधित्व खत्म हो गया।
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