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जल्द दिग्गज वकीलों जैसा काम करेगा AI, आ रहा LegalGPT

THN Network

TECH DESK:  इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी और टेक्नॉलजी लॉ में इस साल एलएलएम पूरा करने के बाद चेन्नई के रहने वाले कपिल नरेश एक और तरह का एलएलएम करने जा रहे हैं। ये एलएलएम है लार्ज लैंग्वेज मॉडल। एक तरह का आर्टिफिशियल इंटलेजेंस जो ChatGPT, माइक्रोसॉफ्ट के बिंग और गूगल के बार्ड जैसे ही चैटबोट्स की ताकतों से लैश होगा। 23 साल के नरेश एक कानूनी सलाहकार फर्म के भी संस्थापक हैं। अब वह ChatGPT की तर्ज पर LegalGPT बनाने की तैयारी कर रहे हैं। यानी एक ऐसा प्लेटफॉर्म जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए केस रिसर्च से लेकर एफआईआर, चार्जशीट ड्राफ्ट करने और दलीलें तैयार करने तक का काम करेगा। एकदम उस तरह जैसे कोई दिग्गज वकील करता है।

नरेश बताते हैं, 'फिलहाल, लीगलजीपीटी सिर्फ एक फर्स्ट ईयर लॉ स्टूडेंट की तरह है या उसे अच्छे प्रॉम्पट्स दिए जाएं तो मेरे जैसे नौसिखिए वकील जैसा काम कर सकता है। मैं LegalGPT को इतना शानदार बनाना चाहता हूं जो कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी जैसे दिग्गज वकीलों की तरह काम कर सके।'

नरेश बताते हैं कि उन्होंने LegalGPT का सबसे पहले टेस्ट एक एफआईआर और चार्जशीट को ड्राफ्ट करने के लिए लिए किया। उसकी नतीजों से संतुष्ट होने के बाद उन्होंने एक उसे पारिवारिक संपत्ति से जुड़े मामले में पावर ऑफ अटार्नी का टेंपलेट तैयार करने का काम दिया। बॉट ने जो नतीजे दिए उससे नरेश हैरान रह गए। इसके बाद उन्होंने अपने ही किसी केस से जुड़े फैक्ट्स के साथ एआई से लीगल डॉक्यूमेंट बनाने को कहा। डॉक्यूमेंट लगभग रेडी था, बस कुछ छोटे-मोटे बदलाव करने थे। वह कहते हैं, 'मैं जो LegalGPT डिवेलप कर रहा हूं उस पर 80:20 रूल अप्लाई करूंगा। एक वकील के तौर पर हमें 20 प्रतिशत काम तो खुद करना ही पड़ेगा।'

हाल ही में एक अमेरिकी वकील स्टीवन ए. स्क्वॉर्ट्ज चैटजीपीटी के इस्तेमाल को लेकर मुश्किलों में फंस गए। उन्होंने उसका यूज करके जो कानूनी दस्तावेज बनाया उसे अदालत में पेश कर दिया। पता चला कि चैटजीपीटी ने कई झूठे और मनगढ़ंत मामलों का जिक्र किया था जो वास्तव में कभी हुआ ही नहीं था। तो क्या LegalGPT भी इस तरह की गलतियां करेगा? इसके जवाब में नरेश कहते हैं कि वह अपने बॉट को प्रमाणित लीगल डेटाबेस पर ट्रेनिंग देंगे ताकि वह 'विश्वसनीय, कुशल और प्रोडक्टिव' हो।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जल्द ही लीगल सिस्टम का चेहरा बदलने वाला है। ये गेमचेंजर साबित होगा। मार्च-अप्रैल में हार्वर्ड लॉ स्कूल ने एक पेपर प्रकाशित किया था और उसने भी दावा किया था कि चैटजीपीटी जैसे एआई प्लेटफॉर्म लीगल रिसर्च, डॉक्युमेंट बनाने, कानूनी सूचनाओं और विश्लेषण के क्षेत्र में उथल-पुथल मचाएगा। पेपर में ये भी कहा गया है कि अगर वकील प्रतिस्पर्धा में बने रहना चाहते हैं तो उन्हें जल्द ही इन नए टूल का इस्तेमाल सीखना होगा।

भारत के लीगल सिस्टम में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल शुरू भी हो चुका है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने JIVA (Judges' Intelligent Virtual Assistant) नाम से एक पायलट प्रोजेक्ट तैयार करा रहा है। इसका मकसद जजों को अदालती मामलों में मदद पहुंचाना है। आगामी इंडिया जैसे कुछ संगठन पहले से ही जस्टिस सिस्टम में एआई का इस्तेमाल शुरू कर चुके हैं।


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