Ticker

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

'दहेज-उत्पीड़न कानून पर विचार करे केंद्र ताकि न हो सके दुरुपयोग': Supreme Court


THN Network

NEW DELHI: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र से कहा कि वह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के गलत इस्तेमाल से बचने के लिए इसकी धारा 85 और 86 में जरूरी बदलाव करने पर विचार करे, ताकि झूठी शिकायतें दर्ज करने के लिए इसका दुरुपयोग न हो सके. भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 में कहा गया है, 'किसी महिला का पति या पति का रिश्तेदार उस महिला के साथ क्रूरता करेगा तो उसे 3 साल कैद की सजा दी जाएगी. साथ ही उसेेे जुर्माना भी भरना पड़ सकता है.

दरअसल, भारतीय न्याय संहिता की धारा 86 में 'क्रूरता' की परिभाषा के तहत महिला को मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की हानि पहुंचाना शामिल है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने 14 साल पहले केंद्र सरकार से दहेज विरोधी कानून पर फिर से विचार करने को कहा था, क्योंकि बड़ी संख्या में दर्ज कराई गयी शिकायतों में घटना को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है.

1 जुलाई से लागू होगी भारतीय न्याय संहिता

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनवाई री. पीठ ने कहा कि वह भारतीय न्याय संहिता, 2023 की क्रमशः धारा 85 और 86 पर गौर करेगी, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या विधायिका ने सुप्रीम कोर्ट सुझाव पर गंभीरता से गौर किया है या नहीं. चूंकि, भारतीय न्याय संहिता को एक जुलाई से लागू किया जाना है.

परिवार के सदस्यों ने दहेज की मांग पर पहुंचाया मानसिक आघात

दरअसल, एक महिला द्वारा पति के खिलाफ दायर की गई दहेज-उत्पीड़न के मामले को रद्द करते समय सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी आई. जबकि, पीड़ित महिला की ओर से दर्ज कराई गई एफआईआर के अनुसार, व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्यों ने कथित तौर पर दहेज की मांग की और उसे मानसिक एवं शारीरिक आघात पहुंचाया.

महिला का आरोप- परिवार ने शादी के समय की थी बड़ी रकम खर्च 

एफआईआर में कहा गया है कि महिला के परिवार ने उसकी शादी के समय एक बड़ी रकम खर्च की थी और अपना 'स्त्रीधन' भी पति और उसके परिवार को सौंप दिया था. हालांकि, शादी के कुछ समय बाद, पति और उसके परिवार वालों ने झूठे बहाने बनाकर उसे परेशान करना शुरू कर दिया.

रजिस्ट्री की कॉपी कोर्ट ने सभी विभागों को भेजने के दिए निर्देश

पीठ ने कहा कि एफआईआर और आरोप पत्र को पढ़ने से पता चलता है कि महिला की ओर से लगाए गए आरोप काफी अस्पष्ट, सामान्य और व्यापक हैं, जिनमें आपराधिक आचरण का कोई उदाहरण नहीं दिया गया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री को इस फैसले की एक-एक प्रति केंद्रीय कानून और गृह सचिवों, केंद्र सरकार को भेजने का निर्देश दिया, जो इसे कानून और न्याय मंत्री के साथ-साथ गृह मंत्री के समक्ष भी रख सकते हैं.

Post a Comment

0 Comments