PATNA DESK: बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार ने फ्लोर टेस्ट जीत लिया. उनके पक्ष में 129 वोट पड़े, जबकि मुख्य विपक्षी दल आरजेडी ने वॉक आउट कर दिया. हालांकि फ्लोर टेस्ट के कुछ घंटे पहले तक पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने राज्य में बड़े स्तर पर खेला करने की बात की थी. इतना ही नहीं नीतीश के कई विधायक कल उनकी बैठक से भी नदारद दिखे. सिर्फ नदारद ही नहीं रहे बल्कि उनमें से तीन विधायकों के तो फोन भी स्विच ऑफ थे. जिसके बाद से चर्चा तेज होने लगी थी कि ये विधायक कल से फ्लोर टेस्ट से पहले तेजस्वी के पाले में जाकर नीतीश को गच्चा देने वाले हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर एक रात में नीतीश कुमार ने ऐसा क्या कर दिया कि बिहार में खेला नहीं हो पाया और बाजी पलट गई...
रात भर मे कैसे पलट गई बाजी, 3 पॉइंट्स में समझिए
1. विधायकों की मानी गईं शर्तें- बिहार में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के चार विधायक हैं और इन विधायकों का बहुमत साबित कराने में अहम रोल था, लेकिन फ्लोर टेस्ट के एक दिन पहले 6 विधायक आउट ऑफ कॉन्टैक्ट हो गए. उन्होंने राज्य मंत्री श्रवण कुमार के आवास पर पार्टी विधायकों के लिए आयोजित भोज में भी हिस्सा नहीं लिया.
हालांकि इनमें से तीन विधायक उसी दिन लौट आए थे. वहीं एक विधायक संजीव कुमार को झारखंड से बिहार में प्रवेश करते ही पुलिस ने हिरासत में ले लिया था.
2. नाराज विधायकों से नीतीश ने खुद की बात- सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार नीतीश कुमार ने सभी नाराज विधायकों से खुद फोन कॉल पर बात की और उन्हें बिहार विधानसभा में पहुंचने के लिए मनाया.
3. जीतन राम मांझी को मनाने नित्यानंद को भेजा- नीतीश कुमार ने फ्लोर टेस्ट से एक दिन पहले नाराज मांझी को मनाने का काम केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय सौंपा था. आज भी पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के बिहार विधानसभा में पहुंचने से पहले नित्यानंद उनके आवास पर करीब आधा घंटा रुके थे.
इस दौरान दोनों नेताओं के बीच विश्वास मत की रणनीति पर चर्चा हुई. इस मुलाकात के दौरान हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के चारों विधायक भी वहां मौजूद रहे.
क्यों नाराज थे मांझी?
दरअसल नीतीश सरकार को समर्थन दे रहे हम प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी फ्लोर टेस्ट से पहले कई बार अपनी मांग रख चुके हैं. उनका कहना है कि उनकी पार्टी को सरकार में दो मंत्री पद दिए जाने का वादा किया गया था, उसे पूरा किया जाए. अभी सिर्फ मांझी के बेटे संतोष सुमन को मंत्री बनाया गया है.
आनंद मोहन और अनंत सिंह के परिवार को साधा
नीतीश कुमार ने फ्लोर टेस्ट से पहले आनंद मोहन के बेटे और अनंत सिंह की पत्नी को साध लिया. दोनों आरजेडी खेमे में थे. इसके अलावा प्रह्लाद यादव भी सत्ता पक्ष के खेमे में बैठे नजर आए. अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी मोकामा से विधायक हैं, जबकि आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद शिवहर से. दोनों को लालू परिवार का करीबी माना जा रहा था. दोनों के नीतीश कुमार के पाले में चले जाने की वजह से आरजेडी का गेम प्लान खराब हो गया.
अब चर्चा है कि आनंद मोहन की पत्नी जेडीयू के टिकट से वैशाली या शिवहर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ सकती हैं, वहीं नीलम देवी को भी नीतीश कुमार की तरफ से बड़ा इनाम मिल सकता है. अनंत सिंह की रिहाई की भी चर्चा है.
फ्लोर पर नहीं पहुंचे एनडीए के 5 विधायक
जेडीयू के तीन विधायक बीमा भारती, दिलीप रॉय और बीजेपी के तीन विधायक मिश्री लाल यादव, रश्मि वर्मा और भागीरथी देवी फ्लोर पर नहीं पहुंचीं.
फ्लोर टेस्ट से पहले किसे कितने विधायकों का समर्थन था
बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं और यहां सरकार बनाने के लिए 122 सीटें चाहिए. फ्लोर टेस्ट से पहले एनडीए के पास 128 विधायकों का समर्थन था. यानी एनडीए के पास बहुमत से 5 ज्यादा विधायक समर्थन में थे. एनडीए में बीजेपी के 78, HAM के 4 और जेडीयू के 45 विधायक थे. वहीं, एनडीए को एक निर्दलीय विधायक का भी समर्थन था.
दूसरी तरफ विपक्ष की बात करें तो फ्लोर टेस्ट से पहले उनके पास कुल 114 विधायकों का समर्थन था, जो कि बहुमत से केवल 8 विधायक कम है. महागठबंधन में आरजेडी के 79, कांग्रेस के 19 और लेफ्ट के 16 विधायक हैं. इसके अलावा बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM का भी एक विधायक है, जो ना तो एनडीए में शामिल है और ना ही महागठबंधन में.
बिहार फ्लोर टेस्ट के बाद किसके पास कितना समर्थन
कुल विधायक- 243
बहुमत का आंकड़ा- 122
एनडीए- 129
बीजेपी- 78
जेडीयू-43 (आरजेडी के 3 विधायकों ने सरकार के पक्ष में वोट किया. विधानसभा अध्यक्ष महेश्वर हजारी ने वोट नहीं किया)
हम- 04
निर्दलीय- 01
महागठबंधन-112
आरजेडी- 76 (3 विधायक सरकार के पक्ष में चले गए)
कांग्रेस- 19
लेफ्ट- 16
एआईएमआईएम- 01
अब समझिए कैसे होता है फ्लोर टेस्ट?
फ्लोर टेस्ट को हिंदी भाषा में विश्वासमत कहा जा सकता है. जिसके जरिये तय किया जाता है कि किसी भी राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री या सरकार के पास पर्याप्त बहुमत है या नहीं. फ्लोर टेस्ट में जनता के वोट के जीते हुए विधायक अपने वोटों के जरिए सरकार के भविष्य का निर्णय करते हैं.
यह सदन में चलने वाली एक पारदर्शी प्रक्रिया है. इसमें राज्यपाल किसी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते. विश्वासमत के दौरान विधायकों या सासंदों को व्यक्तिगत तौर पर सदन में प्रस्तुत रहना होता है और सबके सामने अपना वोट यानी समर्थन देना होता है.
अगर मामला केंद्र सरकार का हो तो ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री को साबित करना होता है कि उनके पास पर्याप्त सांसदों का समर्थन है या नहीं. लेकिन वहीं राज्य के मामले में विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होता है, वहीं केंद्र सरकार की स्थिति में लोकसभा में फ्लोर टेस्ट होता है.
फ्लोर टेस्ट में विधायकों या सासंदों को व्यक्तिगत तौर पर सदन में प्रस्तुत रहना होता है और सबके सामने अपना वोट यानी समर्थन देना होता है.
कौन कराता है फ्लोर टेस्ट?
इस पूरे प्रक्रिया की जिम्मेदारी सदन के स्पीकर के पास होती है. अगर किसी राज्य में स्पीकर का चुनाव नहीं हुआ हो तो ऐसी स्थिति में प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया जाता है. ये एक तरह से अस्थाई स्पीकर होते हैं. हालांकि ये पूरी प्रक्रिया पारदर्शी होती है.
सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक आदेश में इस बात का जिक्र किया है कि फ्लोर टेस्ट से संबंधित सारे फैसले ही प्रोटेम स्पीकर लेते हैं. वोटिंग की स्थिति में सबसे पहले विधायकों की तरफ से ध्वनि मत लिया जाता है. जिसके बाद कोरम बेल बजती है और सदन में मौजूद सभी विधायकों को सत्ता पक्ष और विपक्ष में बंटने को कहा जाता है.
इस प्रक्रिया के दौरान विधायक सदन में बने “समर्थन या विरोध’ वाली लॉबी की तरफ चले जाते हैं. जिसके बाद पक्ष में पहुंचे विधायक और विपक्ष में बंटे विधायकों की गिनती होती है और फिर स्पीकर इसी आधार पर परिणाम घोषित करते हैं.
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