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INDIA बनने की इनसाइड स्टोरी:क्या सोचकर रखा नाम, BJP के खिलाफ कैसे होगा इस्तेमाल

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दिसंबर 2021 में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था, 'UPA क्या है? कोई UPA नहीं है।' डेढ़ साल बाद 18 जुलाई 2023 को विपक्ष की बैठक के बाद ममता बनर्जी ने कहा, 'सारा फोकस, सारी पब्लिसिटी, सारा कैंपेन, सारे प्रोग्राम्स INDIA के बैनर तले होंगे। यदि कोई इसे चुनौती दे सकता है, तो देकर दिखाए।'


ये दो बयान UPA यानी यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलायंस से INDIA यानी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस बनने की कहानी कह रहे हैं। मंगलवार को 26 विपक्षी दलों ने मिलकर इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस बनाया है, जिसका शॉर्ट फॉर्म INDIA है।


UPA कैसे बना था?


साल 2004 की बात है। लोकसभा चुनावों में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस यानी NDA की हार होती है। BJP को सिर्फ 138 सीटें मिलती हैं।

कांग्रेस 145 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी। वहीं 43 सीटें जीतकर लेफ्ट किंगमेकर बना। BJP को सत्ता से बाहर रखने के लिए सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस मुख्य भूमिका में आ गई।

अनुभवी कम्युनिस्ट नेता और CPM के महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत कांग्रेस के साथ मिलकर धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को एक साथ लाने में जुट गए। इसके बाद 14 दलों ने कांग्रेस को समर्थन दिया।

गठबंधन के नाम के लिए यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस यानी UPA पहली पसंद नहीं था। बैठक में शामिल लोगों ने बताया कि शुरुआती नाम 'यूनाइटेड सेक्युलर अलायंस' या 'प्रोग्रेसिव सेक्युलर अलायंस' सुझाया गया था।

हालांकि, उस वक्त के DMK प्रमुख एम करुणानिधि ने 16 मई 2004 को एक बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से कहा कि तमिल में सेक्युलर शब्द का अर्थ गैर धार्मिक होता है। इसके बाद उन्होंने प्रोग्रेसिव अलायंस नाम सुझाया। यहीं से यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस यानी UPA की नींव पड़ी। सभी ने इस नाम को स्वीकार कर लिया।

22 मई 2004 को मनमोहन सिंह ने UPA सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। मंत्रिपद की शपथ लेने वालों में NCP प्रमुख पवार, राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद, लोजपा अध्यक्ष राम विलास पासवान, झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन, TRS प्रमुख के चंद्रशेखर राव, DMK के टी आर बालू, दयानिधि मारन, ए राजा और PMK प्रमुख एस रामदास के बेटे अंबुमणि रामदास शामिल थे।

आखिर किन वजहों से UPA बिखर गया?

2006 में UPA को पहला झटका लगा। तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर के चंद्रशेखर राव UPA से अलग हो गए। 2007 में MDMK के वाइको ने साथ छोड़ दिया। सबसे बड़ा झटका 2008 में लगा। अमेरिका से परमाणु डील को लेकर 4 लेफ्ट पार्टियों ने UPA से अपना समर्थन वापस ले लिया।

2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 206 सीटें जीतती है और UPA एक बार फिर से सत्ता में वापसी करती है। हालांकि, इस बार UPA में सिर्फ 5 पार्टियां ही थीं। इनमें तृणमूल कांग्रेस, NCP, DMK, नेशनल कॉन्फ्रेंस और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग यानी IUML शामिल थीं।

हालांकि, बाद में राजद, सपा और बसपा ने भी UPA को समर्थन दिया, लेकिन 2010 में राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल के विरोध में राजद ने समर्थन वापस ले लिया।

2012 में दो बड़ी पार्टियों तृणमूल और DMK भी UPA से अलग हो गईं। इसी साल कई और छोटी पार्टियां भी UPA से अलग हो गईं।

2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का सफाया हो गया। कांग्रेस ने अब तक की सबसे कम 44 सीटें जीतीं। हालांकि, कांग्रेस गठबंधन को अभी भी UPA के रूप में जाना जाता था, लेकिन तकनीकी रूप से कहा जाए तो 2014 के बाद कोई UPA नहीं था।

UPA में शामिल रही ज्यादातर पार्टियों से कांग्रेस के संबंध खराब हो चुके थे। कांग्रेस नेताओं का कहना था कि आजकल वे आम तौर पर विपक्षी दलों के लिए समान विचारधारा वाले दल शब्द का उपयोग करते हैं।

दिसंबर 2021 में सत्तारूढ़ BJP के खिलाफ सभी क्षेत्रीय दलों को एकजुट होने की आवश्यकता पर जोर देते हुए तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि 'UPA क्या है? कोई UPA नहीं है।' यानी यह सीधा संकेत था कि अब UPA का कोई अस्तित्व नहीं है और अब एक नए गठबंधन का समय है।

दूसरी ओर नाम बदलना कांग्रेस का UPA की छवि से बाहर निकलना भी हो सकता है। इसकी वजह है UPA की छवि भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से खराब हो गई थी। मोदी समेत BJP के दूसरे नेता अक्सर वंशवाद की राजनीति और भ्रष्टाचार को लेकर UPA का मजाक उड़ाते हैं।

हाल ही में BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा ने UPA की आलोचना करते हुए कहा था कि U का मतलब उत्पीड़न, P का मतलब पक्षपात और A का मतलब अत्याचार से है।

BJP विरोधी विपक्षी दल INDIA नाम तक कैसे पहुंचे?

26 विपक्षी दलों की दूसरी बैठक सोमवार को बेंगलुरु में शुरू हुई। बताया जा रहा है कि गठबंधन के लिए INDIA नाम का सुझाव सबसे पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिया था। हालांकि, वह चाहते थे कि कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इसे मंजूरी दिलाएं।

बताया जाता है कि वह INDIA नाम पर आसानी से सहमत हो गईं। उन्होंने केवल यह सुझाव दिया कि N का मतलब नेशनल के बजाय न्यू होना चाहिए। फिर इस बात पर अनौपचारिक चर्चा हुई कि क्या D अक्षर का मतलब डेमोक्रेटिक होना चाहिए या डेवलपमेंटल।

जानकार बताते हैं कि विपक्षी दलों के कुछ नेता सोमवार रात को डिनर के बाद चर्चा करने और वार्ता के बाद जारी किए जाने वाले संयुक्त बयान या 'सामूहिक संकल्प' को अंतिम रूप देने के लिए बैठे। बैठक आधी रात के बाद भी चली। इस दौरान यह भी तय हुआ कि मंगलवार को बैठक में ममता बनर्जी INDIA नाम का प्रपोजल रखेंगी।

पहले से तय प्लान के अनुसार, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने बयान से बैठक की शुरुआत की। इसके बाद तृणमूल प्रमुख ममता ने विपक्षी गठबंधन के लिए INDIA नाम का प्रस्ताव दिया।

बिहार के मुख्यमंत्री और JDU प्रमुख नीतीश कुमार ने पूछा कि किसी राजनीतिक गठबंधन का नाम INDIA कैसे रखा जा सकता है। वामपंथी नेता सीताराम येचुरी, डी राजा और जी देवराजन ने भी इस नाम पर हैरानी जताई।

इसके बाद येचुरी ने V (victory) फॉर इंडिया या We फॉर इंडिया नाम सुझाया। हालांकि, कई नेताओं को यह चुनावी नारे जैसा लगा। इस दौरान दिल्ली के CM और आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने कहा कि गठबंधन का नाम देने से ज्यादा महत्वपूर्ण सीट-शेयरिंग फॉर्मूला तय करना है।

येचुरी ने भी तर्क दिया कि सीट-शेयरिंग मुख्य मुद्दा है। उन्होंने केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों का उदाहरण दिया, जहां कांग्रेस और लेफ्ट प्रमुख प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि कांग्रेस कितनी उदार हो सकती है।

इसके बाद एक बार फिर खड़गे और राहुल दोनों ने बैठक में कहा कि 2024 में गठबंधन की जीत की स्थिति में कांग्रेस को प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा नहीं है। राहुल ने कहा कि पार्टी यथासंभव अन्य दलों को समायोजित करने के लिए तैयार है।

गठबंधन का नाम तय करने के लिए सबसे ज्यादा जोर तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस का था। दोनों ही पार्टियां चाहती थीं कि बैठक में ही गठबंधन के नाम पर मुहर लग जाए। लास्ट में बोलते हुए राहुल ने पूरे जोश के साथ INDIA नाम का समर्थन किया।

उनका तर्क था कि विपक्ष आसानी से INDIA बनाम NDA का नैरेटिव बना सकता है। साथ ही लोगों को बताया जा सकता है कि नरेंद्र मोदी INDIA के खिलाफ हैं और जो लोग BJP के खिलाफ हैं वे INDIA के साथ हैं।

उद्धव ठाकरे ने सुझाव दिया कि नाम के साथ एक हिंदी टैगलाइन होनी चाहिए, जिस पर काम किया जा रहा है। बैठक के दौरान कुछ अन्य नाम भी सामने आए। जैसे पीपुल्स अलायंस फॉर इंडिया और प्रोग्रेसिव पीपुल्स अलायंस। PDP की महबूबा मुफ्ती ने राहुल की भारत जोड़ो यात्रा की सफलता की ओर इशारा करते हुए 'भारत जोड़ो अलायंस' नाम का सुझाव दिया।

BJP के खिलाफ विपक्ष इस नाम का कैसे इस्तेमाल करेगा

बैठक के बाद एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए ममता ने कहा, 'NDA क्या आप INDIA को चुनौती दे सकते हैं? BJP क्या आप INDIA को चुनौती दे सकते हैं? अन्य लोग क्या आप INDIA को चुनौती दे सकते हैं?'

उन्होंने आगे कहा- 'सारा फोकस, सारी पब्लिसिटी, सारा कैंपेन, सारे प्रोग्राम्स INDIA के बैनर तले होंगे। यदि कोई इसे चुनौती दे सकता है, तो देकर दिखाए।'

राहुल ने कहा कि लड़ाई अब दो राजनीतिक दलों या विपक्ष और BJP के बीच नहीं है, बल्कि देश की आवाज के लिए है जिसे खामोशी से कुचला जा रहा है। लड़ाई भारत के विचार के लिए है। इसीलिए हम इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव यानी INDIA नाम के साथ आए हैं। लड़ाई NDA और INDIA, उनकी विचारधारा और INDIA के बीच है। आप जानते हैं कि जब कोई INDIA के खिलाफ खड़ा होता है तो कौन जीतता है?

पॉलिटिकल एक्सपर्ट राशिद किदवई कहते हैं कि पटना में विपक्षी दलों की पहली मीटिंग के बाद काफी असमंजस की स्थिति थी। ऐसे में बेंगलुरु की बैठक में गठबंधन का नाम तय हो जाना बड़ा अचीवमेंट है।

देखा जाए तो देश में इस समय दो फ्रंट हैं। सत्ता में शामिल NDA और विपक्षी दल INDIA। हालांकि, दोनों खेमों में 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर आत्मविश्वास की कमी है।

एक खेमे ने 26 दल जमा किए तो दूसरे ने उसी दिन 38 दल जुटा लिए। अगर मोदी सब पर भारी वाली बात है तो ऐसा करने की जरूरत क्या है?



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